|| अथ सातों बार की रमैणी ||

सातों बार समूल बखानौं, पहर घड़ी पल ज्योतिष जानौं ||१||

ऐतवार अन्तर नहीं कोई, लगी चांचरी पद में सोई ||२||

सोम संभाल करो दिन राती, दूर करो नै दिल की काती ||३||

मंगल मन की माला फेरो, चौदा कोटि जित जम जेरो ||४||

बुध बिनानी विद्या दीजै, सत सुकृत निज सुमरन कीजै ||५||

बृहस्पति भ्यास भये बैरागा, तातैं मन राते अनुरागा ||६||

शुक्र साला कर्म बताया, जद मन मान सरोवर नहाया ||७||

सनीचर स्वसा माहिं समोया, जब हम मक्रतार मग जोया ||८||

राहु केतु रोकैं नहीं घाटा, सतगुरु खोलै बज्र कपाटा ||९||

नौ ग्रह नमन करै निरबाना, अविगत नाम निरालंभ जाना ||१०||

नौ ग्रह नाद समोये नासा, सहस कमल दल कीन्हा बासा ||११||

दिशा सूल दहौं दिस का खोया, निरालंभ निरभै पद जोया ||१२||

कठन विषम गति रहन हमारी, कोई ना जानत है नर नारी ||१३||

चन्द्र समूल चिंतामणि पाया, गरीबदास पद पदहि समाया ||१४||

||सत साहिब ||

     

 
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