|| अथ संध्या आरती ||
१
पहली आरती हरि दरबारे, तेज पुंज जहाँ प्राण उधारें || १ ||
पाती पंच पौहप कर पूजा, देव निरंजन और न दूजा || २ ||
खण्ड खण्ड में आरती गाजै, सकल मयी हरि जोत विराजै || ३ ||
शांति सरोवर मज्जन कीजै, जत की धोती तन पर लीजै || ४ ||
ग्यान अंगोछा मैल न राखै, धर्म जनेऊ सत् मुख भाखे || ५ ||
दया भाव तिल मस्तक दीजै, प्रेम भक्ति का अचमन लीजै || ६ ||
जो नर ऐसी कार कमावै, कंठी माला सहज समावै || ७ ||
गायत्रि सो जो गिनती खोवै, तर्पण सो जो तमक न होवे || ८ ||
संध्या सो जो संधि पिछाने, मन पसरे कुं घर में आने || ९ ||
सो संध्या हमरे मन मानी, कहै कबीर सुनो रे ज्ञानी || १० ||
२
ऐसी आरती त्रिभुवन तारे, तेज पुंज जहाँ प्राण उधारे || १ ||
पाती पंच पौहप कर पूजा, देव निरंजन और न दूजा || २ ||
अनहद नाद पिण्ड ब्रेह्मंडा , बाजत अह निस सदा अखंडा || ३ ||
गगन थाल जहाँ उडगन मोती, चंद सुर जहाँ निर्मल जोती || ४ ||
तन मन धन सब अर्पण कीन्हा, परम पुरुष जिन आत्म चीन्हा || ५ ||
प्रेम प्रकाश भरा उजियारा, कहै कबीर में दास तुम्हरा || ६ ||
३
संध्या आरती करो विचारी, कल दूत जम रहे झख मारी || १ ||
लाग्या सुषमन कुंची तारा, अनहद शब्द उठै झनकारा || २ ||
उनमनी संजम अगम घर जाई , अछे कमल में रहया समाई || ३ ||
त्रिकुटी संजम कर ले दरसन, देखत निरखत मन होय परसन || ४ ||
प्रेम मगन होय आरती गावैं, कहै कबीर भौजल बहुर न आवै || ५ ||
४
हरि दर्जी का मर्म न पाया, जिन योह चोला अजब बनाया || १ ||
पानी की सुई पवन का धागा , नौ दस मास सिवते लागा || २ ||
पांच तत् की गुदरी बनाई, चंद सूरज दो थिगरी लगाई || ३ ||
कोटि जतन कर मुकुट बनाया , बिच बिच हिरा लाल लगाया || ४ ||
आपे सिवे आप बनावे , प्रान पुरुष कुं ले पहरावे || ५ ||
कहे कबीर सोई जन मेरा , नीर खीर का करे निवेरा || ६ ||
५
राम निरंजन आरती तेरी , अवगति गति |
कहुक समझ पडे नहीं , क्यों पहुंचे मति मेरी || १ ||
निराकार निरलेप निरंजन , गुण अतीत तिहुं देवा |
ग्यान ध्यान से रहे निराला , जानी जाय न सेवा || २ ||
सनक सनन्दन नारद मुनिजन, शेष पार नहीं पावै |
शंकर ध्यान धरे निस वासर , अजई ताहि झुलावें || ३ ||
सब सुमिरै अपने अनुमाना , तो गति लखी न जाई |
कहैं कबीर कृपा कर जन पर , ज्यो है त्यों समझाई || ४ ||
६
नूर की आरती नूर क छाजै, नूर के ताल पखावज वाजे || १ ||
नूर के गायन नूर कुं गावै, नूर सुनन्ते बहुर न आवै || २ ||
नूर की बानी बोले नूर, झिलमिल नूर रहया भरपूर || ३ ||
नूर कबीरा नूर ही भावै, नूर के कहै परम पद पावै || ४ ||
७
तेज की आरती तेज के आगे, तेज का भोग तेज कूं लागे || १ ||
तेज पखावज तेज बजावै, तेज ही नाचै तेज ही गावे || २ ||
तेज का थाल तेज की बाती, तेज का पुष्प तेज की पाती || ३ ||
तेज के आगे तेज बिराजे, तेज कबीरा आरती साजै || ४ ||
८
आपै आरती आपै साजै, आपै किंगर आपै बाजै || १ ||
आपै ताल झांझ झनकारा, आप नचै अप देखन हारा || २ ||
आपै दीपक आपै बाती, आपै पुष्प आप ही पाती || ३ ||
कहै कबीर ऐसी आरती गाऊं, आपा मधे आप समाऊ || ४ ||
१
अदली आरती अदल समोई , निरभै पद में मिलना होई || १ ||
तत् का तिलक ध्यान की धोती , मन की माला अजपा जोती || ३ ||
नूर के दीप नूर के चौरा , नूर के पुष्प नूर के भौरा || ४ ||
नूर की झांझ नूर की झालर , नूर के संख नूर टालर || ५ ||
नूर की सेज नूर की सेवा, नूर के सेवक नूर के देवा || ६ ||
आदि पुरुष अदली अनुरागी , सुन्न सम्पट में सेवा लागी || ७ ||
खोजो कमल सुरति की डोरी , अगर दीप में खेलो होरी || ८ ||
निरभै पद में निरति समानी , दास गरीब दरस दरबानी || ९ ||
२
अदली आरती अदल उचारा , सत पुरुष दीजो दीदारा || १ ||
कैसे कर छुटे चौरासी , जुनी संकट बहुत तिरासी || २ ||
जुगन जुगन हम कहते आए , भौसागर से जीव छुडाये || ३ ||
कर विश्वास स्वांस कूं पेखो , या तन मे मन मूर्ति देखो || ४ ||
स्वसा पारस भेद हमारा , जो खोजै सो उतरे पारा || ५ ||
स्वसा पारस आदि निसानी , जो खोजै सो होए दरबानी || ६ ||
हरदम नाम सुहंगम सोई , आवागमन बहुर नहीं होई || ७ ||
अब तो चडौ नाम के छाजे , गगन मंडल में नौबत बाजे || ८ ||
अगर अलील शब्द सह्दानी , दास गरीब विहंगम बानी || ९ ||
३
अदली आरती अदल बखाना , कोली बुने विहंगम ताना || १ ||
ग्यान का राच्छ ध्यान की तुरिया , नाम का धागा निश्चये जुरिया || २ ||
प्रेम की पान कमल की खाडी , सुरति का सूत बुने निज गाडी || ३ ||
नूर की नाल फिरै दिन राती , जा कोली कुं काल न खाती || ४ ||
कुल का खूंटा धरनी गाडा , गहर गझिना ताना गाढा || ५ ||
निरति की नली बुने जे कोई , सो तो कोली अबचल होई || ६ ||
रेजा राजिक का बुन दीजै , ऐसे सतगुरु साहिब रीझे || ७ ||
दास गरीब सोई सत कोली , ताना बुन है अर्स अमोली || ८ ||
४
अदली आरती अदल अजूनी , नाम बिना है काया सूनी || १ ||
झूठी काया खाल लुहारा , इला पिंगला सुषमन द्वारा || २ ||
कृतघनी भूले नर लोई , जा घाट निश्चये नाम न होई || ३ ||
सो नर किट पतंग भवंगा , चौरासी में धरि है अंगा || ४ ||
उद्भिज खानी भुगतै प्राणी , समझै नहीं शब्द सह्दानी || ५ ||
हम है शब्द शब्द हम माही , हम से भिन्न और कुछ नहीं || ६ ||
पाप पुन्न दो बिज बनाया , शब्द भेद किन्हें पाया || ७ ||
शब्दै सर्व लोक में गाजे , शब्द वजीर शब्द है राजे || ८ ||
शब्दै स्थावर जंगम जोगी , दास गरीब शब्द रस भोगी || ९ ||
५
अदली आरती अदल जमाना , जम जौरा मेटू तलबाना || १ ||
धर्मराय पर हमरी धाई , नौबत नाम चढो ले भाई || २ ||
चित्र गुप्त के कागज किरूं , जुगन जुगन मेटू तकसिरू || ३ ||
अदली ग्यान अदल इक रासा , सुन कर हंस न पावै त्रासा || ४ ||
अजराईल जुरावर दाना , धर्मराय का है तलवाना || ५ ||
मेटू तलब करूं तागिरा , भेटे दास गरीब कबीरा || ६ ||
६
अदली आरती अदल पठाऊ , जुगन जुगन का लेखा ल्याऊ || १ ||
जा दिन नाथे पिण्ड न प्राना , नहीं पानी पवन जिमी असमाना || २ ||
कच्छ मच्छ कुरम्भ न काया , चंद सुर नहीं दीप बनाया || ३ ||
शेष महेश गणेश न ब्रह्मा , नारद शारद न विश्कर्मा || ४ ||
सिद्ध चौरासी ना तेतिसो , नौ अवतार नहीं चौबीसों || ५ ||
पांच तत्व नाहीं गुण तीना , नाद बिन्द नाही घट सीना || ६ ||
चित्र गुप्त नहीं कृतम बाजी , धर्मराय नहीं पंडित काजी || ७ ||
धुंधुकार अनन्त जुग बीते , जा दिन कागज कहु किन चीते || ८ ||
जा दिन थे हम तख्त खवासा, तन के पाजी सेवक दासा || ९ ||
संख जुगन परलौ परवाना , सत पुरुष के संग रहाना || १० ||
दास गरीब कबीर का चेरा , सत लोक अमरापुर डेरा || ११ ||
७
ऐसी आरती पारख लीजै , तन मन धन सब अर्पण कीजै || १ ||
जाकै नौ लख कुंज दिवाले भारी, गोवर्धन से अनन्त अपारी || २ ||
अनन्त कोटि जाकै बाजे बाजे , अनहद नाद अमर पुर साजे || ३ ||
सुन्न मंडल सत लोक निधाना , अगम दीप देख्या अस्थाना || ४ ||
अगर दीप मे ध्यान समोई , झिलमिल झिलमिल झिलमिल होई || ५ ||
ताते खोजो काया काशी , दास गरीब मिले अविनाशी || ६ ||
८
ऐसी आरती अपरम पारा , थाके ब्रह्मा वेद उचारा || १ ||
अनन्त कोटि जाके शम्भु ध्यानी, ब्रह्मा शंख वेद पढे बानी || २ ||
इन्द्र अनन्त मेघ रस माला , शब्द अतीत बिरध नहीं बाला || ३ ||
चंद सुर जा के अनन्त चिराग , शब्द अतीत अजब रंग बागा || ४ |
सात समुद्र जाके अंजन नेना , शब्द अतीत अजब रंग बैना || ५ ||
अनन्त कोटि जाके वाजे बाजैं , पूर्ण ब्रह्म अमरपुर छाजै || ६ ||
तीस कोटि रामा औतारी , सीता संग रहंती नारी || ७ ||
तीन पद्म जाके भगवाना , सप्त नील कन्हवा संग जाना || ८ ||
तीस कोटि सीता संग चेरी , सप्त नील राधा दे फेरी || ९ ||
जाके अर्ध रोम पर सकल पसारा, ऐसा पूरण ब्रह्म हमारा || १० ||
दास गरीब कहे नर लोई , यौह पद चिन्है बिरला कोई || ११ ||
गरीब सतबादी सब संत हैं , आप आपने धाम | आजिज की अरदास है , सकल संत प्रणाम || १२ ||
प्रार्थना
गुरु ज्ञान अमान अडोल अबोल है, सतगुरों शब्द सेरी पिछानी |
दास गरीब कबीर सतगुरु मिले , आन अस्थान रोप्या छुडानी || १ ||
दीन के जी दयाल , भक्ति बिर्द दीजिये | खाने जाद गुलाम अपन कर लीजिये || टेक ||
खाने जाद गुलाम , तुम्हारा है सही | मेहरबान महबूब , जुगन जुग पत रही || १ ||
बांदी का जाम गुलाम , गुलाम गुलाम है | खडा रहै दरबार, सु आठों जाम है || २ ||
सेवक तलबदार , दर तुम्हारे कूक हीं | औगुन अनन्त अपार, पडी मोहि चूक ही || ३ ||
मै घर का बांदी जादा, अर्ज मेरी मानिये | जन कहता दास गरीब अपन कर जानिये || ४ ||
गरीब जल थल साक्षी इक है, डूंगर डहर दयाल | दशों दिशा कू दर्शन, ना कही जौरा काल || १ ||
गरीब जै जै जै करुणामयी, जै जै जै जगदीश | जै जै जै तुं जगतगुरु, पूर्ण बीसवे बीस || २ ||
राग रूप रघुवीर है, मोहन जाका नाम | मुरली मधुर बजाव ही, श्री गरीब दास बलि जाव || ३ ||
गरीब बांदी जाम गुलाम की, सुनियों अर्ज अवाज | यौह पाजी संग लीजियो, जब लग तुम्हरा राज || ४ ||
गरीब परलो कोटि अनन्त है, धरनी अम्बर धौल | मैं दरबारी दर खडा, अचल तुम्हारी पौल || ५ ||
गरीब समरथ तुं जगदीश है, सतगुरु साहिब सार | मैं शरणागति आइया, तुम हो अधम उधार || ६ ||
गरीब संतों की फुलमाल है, बरणों बित अनुमान | मैं सबहन का दास हूं, करो बंदगी दान || ७ ||
गरीब अर्ज अवाज अनाथ की, आजिज की अरदास | आवन जाना मेटिया, दीन्हा निश्चल बास || ८ ||
गरीब सतगुरु के लक्षण कहूं, चाल बिहंगम बीन | सनकादिक पलडे नहीं, शंकर ब्रह्मा तीन || ९ ||
गरीब दुजा ओप न आपकी, जेते सुरनर साध | मुनियर सिद्ध सब देख्या, सतगुरु अगम अगाध || १० ||
गरीब सतगुरु पूर्ण ब्रह्म है, सतगुरु आप अलेख | सतगुरु रमता राम है, या मे मीन न मेख || ११ ||
पूर्ण ब्रह्म कृपा निधान, सुन केशो कर्तार | गरीबदास मुझ दीन की, रखियो बहुत संभार || १२ ||
गरीब पंजा दस्त कबीर का, सिर पर राखो हंस | जम किंकर चंपे नहीं, उधार जात है बंस || १३ ||
अलल पंख अनुराग है, सुन मंडल रहे थीर | दास गरीब उधारिया, सतगुरु मिले कबीर || १४||
सरणा पुरुष कबीर का, सब संतन की ओट | गरीब दास रक्षा करें, कबहू न लागे चोट || १५ ||
गरीब सतबादी के चरण की, सिर पर डारू धूर | चौरासी निश्चय मिटै, पहुंचे तख्त हजूर || १६ ||
शब्द स्वरूपि उतरे, सतगुरु सत कबीर | दास गरीब दयालु है, डिगे बधावै धीर || १७ ||
कर जोरू बिनती करूं, धरूं चरण पर शीस | सतगुरु दास गरीब है, पूर्ण बीसवे बीस || १८ ||
नाम लिए सब बढे, रिन्चक नहीं कुसुर | गरीब दास के चरण की, सिर पार डारूँ धूर || १९ ||
गरीब जिस मंडल साधू नहीं, नदी नहीं गुंजार | तज हंसा वह देसाडा, जम की मोटी मार || २० ||
गरीब जिन मिलते सुख ऊपजै, मेटे कोटि उपाध | भवन चतुर्दश ढूँढिए, परम स्नेही साध || २१ ||
बन्दी छोड दयाल जी, तुमलग हमरी दौर | जैसे काग जहाज का, सूझे और न ठौर || २२ ||
साधु माई बाप है, साधु भाई बंध | साध मिलावै राम से, काटे जम के फंद || २३ ||
बिना धनि की बंदगी, सुख नही तीनों लोक | चरण कमल के ध्यान से, गरीब दास संतोष || २४ ||
|| शब्द ||
तारेंगे तहतिक सतगुरु तारेंगे तहतिक || टेक ||
घट ही मे गंगा, घट ही मे जमुना , घट ही मे है जगदीश || १ ||
तुम्हरा ही ज्ञाना, तुम्हरा ही ध्याना, तुम्हरे तारन की परतीत || २ ||
मन कर धीर बाँध ले रे बौरे, छड दे नै पिछल्यों की रीत || ३ ||
दास गरीब सतगुरु का चेरा, टारेंगे जम की रसीत || ४ ||
||सत साहिब ||