असुर निकन्दन रमैणी

सत्पुरुष समरथ ओंकारा। अदली पुरुष कबीर हमारा।। 1।।

आदि जुगादि दया के सागर, काल कर्म के मोचन आगर।। 2।।

दुःख भंजन दरबेस दयाला, असुर निकन्दन कर पैमाला।। 3।।

आव खाक पावक और पौना, गगन सुन्न दरयाई दौना।। 4।।

धर्म राय दरबारनी चेरा, सुर असुरों का करै निबेरा। सत् का राज धर्मराय कर हीं, अपना किया सभी दंड भर हीं।। 6।

शंकर शेष रु ब्रहा विष्णु, नरद शारद जा उर रसनं।। 7।।

गौरिज और गणेश गोसांई, कारज सकल सिद्ध हो जाई।। 8।।

ब्रहा विष्णु अरु शंभू शोषा, तीन देव दयाल हमेशा।। 9।।

सावित्री और लक्ष्मी गौरा, तिहुं देवा सिर कर है चैरा।। 10।।

पांच तत आरंभन कीना, तीन गुनन मध्य साखा झीना।। 11।।

सतपुरुष से ओंकारा, अविगत रुप रचे गैनारा।। 12।।

कच्छ मच्छ कुरंभ और धौला, सिरजन हार पुरुष है मौला।। 13।।

लख चैरासी साज बनाया, भगलीगर कूं भगल उपाया।। 14।।

उपजै बिनसैं आवैं जाहीं, मूल बीज कुं संसा नाहीं।। 15।।

लील नाभि से ब्रहा आए, आदि ओम के पुत्र कहाए।। 16।।

शम्भू, मनु ब्रहा की साखा, रिग युज साम अथर्बन भाखा।। 17।।

पीबरत भया उतानंपाता, जाके ध्रू है आत्म ग्याता।। 18।।

सनक सनन्दन संत कुमारा, चार पुत्र अनुरागी धारा।। 19।।

तैंतिस कोटि कला विस्तारी, सहंस अठासी मुनिजन धारी।। 20।।

कश्यप पुत्र सूरज सुर ज्ञानी, तीन लोक में किरण समानी।। 21।।

साठ हजार संगी बाल केलं, बीना रागी अजब बलेलं।। 22।।

तीन कोटि योद्धा संग जाके, सिक बंधी है पूर्ण साके।। 23।।

हाथ खडग गल पुष्प की माला, कश्यप सुत है रुप विशाला।। 24।।

कौस्तुभ मणी जड्या बिमान तुम्हारा, सुरनर मुनिजन करत जुहारा।। 25।।

चांद सूरज चकवे पृथ्वी माहीं, निसबासर चरणौं चित लाहीं।। 26।।

पीठे सूरज सन्मुख चंदा, काटै त्रिलोकी के फंदा।। 27।।

तारायण सब स्वर्ग समूलं। पखे रहैं सतगुरु के फूलं।। 28।।

जय-जय ब्रहा समरथ स्वामी, येती कला परम पद धामी।। 29।।

जय-जय शंभू शंकर नाथा, कला गणेशं गौरिज माता।। 30।।

कोटि कटक पैमाल करंता, ऐसा शंभू समरथ कंता।। 31।।

चंद लिलाट सूर संगीता, जोगी शंकर ध्यान उदीता।। 32।

नील कंठ सोहे गरुडासन, शंभू जोगी अचल सिंहासन।। 33।।

गंग तरंग छूटे बहुधारा, अजपा तारी जय जय कारा।। 34।।

रिद्धि सिद्धि दाता शंभू गुसांई, दालिदर मोच सभै हो जाई।। 35।।

आसन पदम् लगाये जोगी, निःइच्छा निर्बानी भोगी।। 36।।

सर्प भुवंग गले रुंड माला, बृषभ चढिए दीन दयाला।। 37।।

वामे कर त्रिशुल बिराजै, दहने कर सुदर्शन साजै।। 38।।

सुन अरदास देवन के देवा, शंभू जोगी अलख अभेवा।। 39।।

तू पैमाल करे पल माहीं, ऐसे समरथ शंभू सांई।। 40।।

एक लाख योजन ध्वजा फरकै, पचरंग झंडे मोहरे रखै।। 41।।

काल भद्र कृत देव बुलाउं, शंकर के दल सब ही ध्याउं।। 42।।

भैरों खेत्रपाल पलीतं, भूत अरु दैत्य चढे संगीतं।। 43।।

राक्षस भंजन बिरद तुम्हारा, ज्यूं लंका पर पदम अठारा।। 44।।

कोटयों गंधर्व कमंद चढावैं, शंकर दल गिनती नहीं आवै।। 45।।

मारै हाक दहाक चिंघारै, अग्नि चक्र बानो तन जारैं।। 46।।

कंप्या शेष धरनि थररानी, जा दिन लंका घाली घानी।। 47।।

तुम शंभू ईशन के ईशा, वृषभ चढिए बिसवे बीसा।। 48।।

इन्द्र कुबेर और बरुण बुलाउं, रापति सेत सिंहासन ल्याउं।। 49।।

इन्द्र दल बादल दरियाई, छियानवैं कोटि की हुई चढाई।। 50।।

सुरपति चढे इन्द्र अनुरोगी, अनन्त पद्म गंधर्व बडभागी।। 51।।

कृष्ण भंडारी चढे कुबेरा, अब दिल्ली मंडल बौहर्यों फेरा।। 52।।

वरुण विनोद चढे ब्रहा ज्ञानी, कला संपूर्ण बारह बानंी।। 53।।

धर्मराय आदि जुगादि चेरा, चैदह कोटि कटक दल तेरा।। 54।।

चित्रगुप्त के कागज मांही, जेता उपज्या सतगुरु सांई।। 55।।

सातों लोक पाल का रासा, उर में धरिये साधू दासा।। 56।।

विष्णु नाथ हैं असुर निकन्दन, संतो ंके सब काटैं फंदन।। 57।।

नरसिंह रुप धरे गुरुराया, हिरनाकुश कूं मारन धाया।। 58।।

शंख चक्र गदा पद्म विराजैं, भाल तिलक जाके उर साजैं।। 59।।

वाहन गरुड कृष्ण असवारा, लक्ष्मी ढौरे चंवर अपारा।। 60।

रावण महिरावण से मारे, सेतु बांध सैना दल तारे।। 61

जरा सिंध और बालि खपाए, कंस केश चानौर हराए।। 62।।

काली दह में नागी नाथा, सिसुपाल चक्र सैं काट्या माथा।। 63।।

काल यवन मथुरा पर धाए, अठारा कोटि कटक चढ आए।। 64।।

मुचकंद पर पीताबंर डारया, कालयवन जहां वेग सिंहार्या।। 65।।

परसुराम बावन अवतारा, कोई न जाने भेव तुम्हारा।। 66।।

संखा सुर मारे निर्वानी, बराह रुप धरे परवानी।। 67।।

राम अवतार रावण की बेरा, हनुमंत हाका सुनी सुमेरा ।। 68 ।।

आदि मूल बेदी ओंकारा, असुर निकन्दन कीन सिंधारा।। 69।।

वशिष्ठ विश्वामित्र आये, दुर्वासा और चुणक बुलाए।। 70।।

कपिल कलंदर कीन्ह जुहारा, फौज नकीब सभन सिरदारा।। 71।।

गोरख दत दिगंबर बाला, हनुमत अंगद रुप विशाला।। 72।।

धूव प्रह्लाद और जनक विदेही, सुखदेव संगी परम सनेही।। 73।।

पारासुर और व्यास बुलाए, नल-नील मौहरे चढ धाये।। 74।।

सुग्रीव संग और लक्ष्मण बाला, जोर घटा आए घन काला।। 75।।

जयदेव पायल जंग बजाये, अजामेल और हरिचन्द आये।। 76।।

तामरध्वज मोरध्वज राजा, अंबरीष कर पूर्ण काजा।। 77।।

सूरज वांसी पांचों पांडो, काल मीच सिर देवैं डांडो।। 78।।

धर्म युधिष्ठिर धरे धियाना, अर्जुन लख संधानी बाना।। 79।।

सहदेव भीम नकुल और कौंता, द्रोपदी जंग का दीन्हा न्योता।। 80।।

हाथ खप्पर अरु मस्तक बिंदा, ठारह खूहनि मेलै दुंदा।। 81।।

देवी शिव शिव करै सिंहारै, खडग बाण चक्रों से मारै ।। 82।।

चैसठ जोगनि बावन बंीरा, भक्षण बदन करैं तदबीरा ।। 83।।

असुर कटक धूमर उडजाई, सुरौं रक्षा करैं गोसांई ।। 84।।

पचरंग झंडे लंब लहरिया, दक्खन के दल उतर उतरिया ।। 85।।

पचरंग झंडे लंब चलाए, दक्खन के दल उतर धाए ।। 86। ।

मोहरै हनुमंत गोरख बाला, हरि के हेत हरौल हमाला ।। 87।।

चिंहडोल चुणक दुर्वासा देवा, असुर निकंदन बूडत खेवा ।। 88।।

बलि अरु शेष पतालौ साखा, सनक सनन्दन सुरगों हाका ।। 89।।

दहुं दिस बाजू ध्रू प्रहलादा, कोटि कटक दल कटा प्यादा ।। 90।।

बजर बान की बोउं बाडी, सतगुरु संत जीत है राडी ।। 91।।

जे कोई माने शब्द हमारा, राज करे काबुल कंधारा ।। 92।।

अरब खरब मक्के कूं ध्याउं, मदीना बांध हद में ल्याउं ।। 93।।

ईरा तुरा कहां शिकारी, गढ गजनी लग है असवारी।। 94।।

दिल्ली मंडल पाप की भूमा, धरती नाल जगाउं सुम्मा ।। 95।।

हस्ती घोरा कटक सिंघारौं, दृष्टि परै असुरों दल मारौं ।। 96।।

संख पंचायन नादू टेंर, स्वर्ग पतालों हाक सुमेरं ।। 97।।

बलकालीन सुर बाचा बंधा, पाण्डों जुग द्वापर की संध्या ।। 98।।

नारद कुंभक रिषि कुर्बाना, मारकंड रुमी रिषि आना ।। 99।।

इन्द्र रिषंी बकतालब स्वामी, और संत साधू घणनामी ।। 100।।

नाथ जलंधर और अजैपाला, गुरु मछंदर गोरख बाला ।। 101।।

भरथरी गोपी चंदा जोगी, सुलतान अधम हैं सब रस भोगी ।। 102।।

नर हरिदास पखै बलि भीषम, व्यास बचन परमानी सीखं ।। 103||

नमा और रैदासा रसीला, कोई न जाने अविगत लीला ।। 104।।

पीपा धन्ना चढे बाजीदा, सेउ सम्मन और फरीदा।। 105।।

दादू नानक नाद बजाए, मलूक दास तुलसी चढ आए।। 106।।

कमाल मल्ल और सूर ज्ञानी, रामानन्द के है फुरमानी।। 107।।

मीरांबाई और कमाली, भीलनी नाचै दे दे ताली।। 108।।

नासकेतु नकीब हमारा, उद्यालक मुनि करत जुहारा।। 109।।

साहिब तख्त कबीर ख्वासा, दिल्ली मंडल लीजै बासा।। 110।।

सतगुरु दिल्ली मंडल आयसी, सूती धरनी सुम्म जगायसी।। 111।।

काग भुशंड छत्र के आगे, गंधर्व करत चलत है रागै।। 112।

ऐता गुप्तार रासा पढैगा, सो चढेगा।। 113।।

चंपैगा पर भूमि सीम, साखी कृष्ण पांचों पांडो भारती भीम।। 114।।

द्रोपदी के खप्पर में मेदनी समायसी, चैंसठ जोगनी मंगल गायसी।। 115।।

बजर बान का ताला राक्षस सिर ठीक सी, दक्खन के दल द्वीप उतर कूं झोक सी।। 116।।

     

 
It's non-commercial , non-profitable site promoted and developed by volunteers.All logos and trademarks used in this site are property of their respective owner