।। सूर्य गायत्री।।

उगमंत सूरं, वर्षत नूरं, बाजतं तूरं, सकल लोक भरपूरं, काल कंटक दूरं।। 1।।

सत् सुकृत श्री सूरज बाला, जप तप संयम के रखवाला। हाथ खड्ग गल पौहप की माला, कानों कुण्डल रुप विशाला।। 2।।

रिद्धि सिद्धि दीजो कर प्रतिपाला, मोक्ष मुक्ति के तुम ही दयाला। हम पर सूरज कर कृपाला। दास गरीब चितावन वाला।। 3।।

||सत साहिब||

     

 
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