।। गीता गायत्री।।

पान अपान समानादं, मन इंद्री फल अस्थिरं। नासाग्रे निरालंबं, चीन्हते द्वादस दलं।

अगर मूले न मूूर्छा, मूर्छा सः जीव जन्मं।ज् जीव जन्मं सः भ्रम भूते, भ्रम भूते सः कर्म कालं, कर्म कालं सः विनास्ती।

हर-हर-हर उचार, शिव योगी की गति अपार। महादेव कैलाश कुंज, सुरनर मुनिजन, सिर करैं पुंज।

दास गरीब धर शिव का ध्यान, भक्ति मुक्ति जिन दीन्ही दान।

||सत साहिब ||

     

 
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